मै 'मोहल्ले' मे विनीत भाई की 'पान की दुकान' पर खडा हो कर ज्ञानदत्त जी की 'हलचल' से उलझते 'पंगेबाज' को 'भडास' निकाल कर 'नौ दो ग्यारह' होते देख 'फुरसतिया'ते हुये 'उड्नतश्तरी' पर बैठ 'चोखेर बाली' को ताकते हुए निकल लेता था अपने अंग्रेजी (तकनीकी) ब्लाग 'इंडिया वेबसाइट डिजायनर' की ओर। इसका हिंदी संस्करण अभी भी विचाराधीन है। फिर मित्रों ने उकसाया एक गैर तकनीकी ब्लॉग के लिये और अब पेश है अहा!! जिन्दगी।